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इस बार अक्षय तृतीया और भगवान परशुराम जयंती एक साथ; जाने पूजा करने की सही विधि

इस बार परशुराम जयंती पंचाग के भेद के कारण, 25 अप्रैल शनिवार को प्रदोष काल में मनाई जा रही है। भगवान विष्णु के अवतार, परशुराम, माता रेणुका के गर्भ से वैशाख मास के शुक्ल तृतीया तिथि को पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। इस तरह, अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम का जन्म माना जाता है। साथ ही, यह भी माना जाता है कि भगवान परशुराम के जन्म का समय ‘प्रदोष काल’ है।

इस वर्ष प्रदोष काल 25 अप्रैल को पड़ रहा है और यही कारण है कि इस बार शनिवार के दिन परशुराम जयंती मनाई जाएगी। लेकिन पुरानी मान्यताओं के अनुसार कुछ लोग अलग अलग स्थानों पर इसे 26 अप्रैल को मनाने वाले हैं। इस बार अक्षय तृतीया और भगवान परशुराम जयंती दोनों एक साथ मनाई जाएगी। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि पुरे  देश में कोरोना के कारण लॉक डाउन लगा है। इसलिए इन दोनों उतस्वों को इस बार घर से ही मनाने की हिदायत दी जा रही है।

पूजा का विधि विधान

भगवान परशुराम को विष्णु के छठे अवतार के रूप में देखा जाता है। हर वर्ष उनकी जयंती वैशाख के महीने में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। जयंती को मनाने के लिए सभी विधि विधानों का उल्लेख इस प्रकार से है…… 

प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा आसान और स्थान को साफ़ और शुद्ध करें। इसके बाद भगवान् परशुराम को जल चढ़ाएं और पुष्प अर्पित करें। इस तरह से भगवान् का आव्हान करें। ऐसा कहा जाता है कि परशुराम भगवान् शिव के ही अवतार है। परशुराम भी भगवान हनुमानजी और अश्वत्थामा की तरह पृथ्वी पर अभी भी मौजूद हैं। वेदों के अनुसार इन्हें न्याय का देवता भी माना जाता है।

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भगवान परशुराम का श्री राम और श्री कृष्ण के साथ संबंध

त्रेतायुग की बात करें तो उस समय भी भगवान् परशुराम का अस्तित्व मौजद था। भगवान राम ने जब स्वयंवर में शिव का धनुष तोड़ा तो उस समय परशुराम महेंद्र पर्वत पर तपस्या में लीं थे। लेकिन धनुष के टूटने का पता चलते ही वो बड़े क्रोध में आ गए। गुस्से में जब आए तो भगवान् राम ने  उन्हें प्रणाम किया और उन्हें सुदर्शन चक्र अर्पित करते हुए यह भी कहा कि द्वापर युग में जब वो दुबारा अवतार लेंगें तो उन्हें उनकी मदद की आवश्यकता होगी। इसके बाद, भगवान ने द्वापर युग में श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया, और धरम की रक्षा करते समय परशुरामजी ने उन्हें उनका सुदर्शन चक्र वापस लौटाया।

गणेश का तोड़ा था एक दांत

भगवान परशुराम बहुत जल्दी क्रोधित हो जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव से मिलने के लिए जब परशुराम कैलाश पर्वत पर पहुंचे, तो भगवान गणेश ने उन्हें शिव से मिलने के लिए रोका। जिससे वो क्रोध में में आ गए और गुस्से में उन्होंने  अपनी कुल्हाड़ी उठाई और से भगवान गणेश जी पर वार कर दिया। जिससे उनका एक दांत टूट गया। तब से भगवान गणेश को एकदंत कहा जाने लगा।

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