America and Russia के बीच तलवार की धार पर चल रहा है भारत, कब तक चल सकेगा ऐसा?
भारत अंतरराष्ट्रीय मामलों में भी द्विपक्षीय संबंधों और निजी हितों का अधिक ध्यान रखने लगा है. रूस यूक्रेन युद्ध के बाद यह साफ तौर पर दिखा यह पश्चिमी देशों के दबाव में ना आते हुए भारत ने रूस से अपने दोस्ताना संबंध कायम रखे और उससे कच्चा तेल भी खरीदा. यह भारत के पंपरागत गुटनिरपेक्षता की नीति से बहुत अलग है. इस बार भारत अंतरराष्ट्रीय मामलों में भी निजी हितों को प्राथमिकता दे रहा है और रूस और अमेरिका से समान रूप से द्विपक्षीय संबंध कायम रखे हुए. वहीं इस साल जी20 देशों की अध्यक्षता के चलते यह काम और चुनौतीपूर्ण हो गया है।लेकिन क्या भारत यह नाजुक संतुलन बनाए रखेगा और अगर हां तो कब तक?
गुटनिरपेक्ष नीति में बदलाव?
शुरू से ही भारत का प्रयास था कि वह शीतयुद्ध का हिस्सा नहीं रहेगा।1950 के दशक में भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा रहा, लेकिन साथ ही उसने रूस के साथ भी दोस्ताना बर्ताव रखा।कई मामलों में अमेरिका के साथ भी द्विपक्षीय संबंध बनाए, लेकिन अतंरराष्ट्रीय मामलों में तटस्थता और गुटनिरपेक्षता कायम रखते हुए दूर रहने की नीति ही कायम रखी. पिछले एक साल से हालात बदल गए हैं।
सवाल किसके लिए अहम
भारत की इस स्थिति का विश्लेषण करते हुए ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में इसका विश्वेषण किया गया है जिसमें भारत की वर्तमान स्थितियों का आंकलन करते हुए ऐसे ही सवालों का जवाब देने की कोशिश की गई है. लेकिन यह सवाल भारत के लिए जितना जरूरी है उससे कहीं ज्यादा पश्चिमी देशों के साथ अमेरिका और रूस के लिए कहीं अधिक मायने रखा है।
भारत-अमेरिका संबंध
यूक्रेन संकट के बाद भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा, तो क्या भारत और अमेरिका के संबंध इससे खराब हो गए।या अमेरिका अब भारत का साथी नहीं रहा. तो ऐसा बिलकुल नहीं है. बहुत से अंतरराष्ट्रीय मामले ऐसे हैं जिनमें भारत और अमेरिका ना केवल एक मत बल्कि सहयोगी भी है।इसका सबसे बड़ा कारक चीन है।क्वाड की भारत की सदस्यता दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार, जैसे कई मुद्दे हैं जो अमेरिका और भारत को एक लाती है और भारत इसके प्रति काफी उत्साहित भी रहता है।
रूस के साथ स्थिति
रूस के साथ भारत के अपने अलग तरह के संबंध हैं. भारत रूस से सबसे ज्यादा हथियार खरीदता है, दोनों देशो के बीच गहरे सांस्कृतिक संबंध हैं।अब हथियार के साथ तेल की खरीद में भारत रूस पर ज्यादा निर्भर होने की दिशा में जाता दिख रहा है. हां हथियार की खरीद कम जरूर हो रही हैं।रूस यूक्रेन विवाद के दौरान भारत का पश्चिमी देशों के दबाव में ना आने से रूस भारत के और करीब आ गया है।