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World Nature Conservation Day 2020: अब समय आ गया है कि जल, जंगल और जमीन का संरक्षण किया जाए; आशीष शीतल

World Nature Conservation Day 2020: 28 जुलाई को व्यापक रूप से मनाया जाता है। वर्तमान समय में प्रकृति का बचाव करने और हमारे शुद्ध स्रोतों के संरक्षण के बारे में सचेत होना बेहद जरुरी है। आज हम विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस को क प्रमुख विषय के रूप में देखते हैं, जिसमें प्रकृति को संरक्षित और संरक्षित करने के महत्व पर ध्यान देने की कोशिश की जाती है। दुनिया भर के संगठन और सरकारें इस दिन को विशेष बनाने के लिए विशिष्ट अवधारणाएँ देते रहे हैं। 

World Nature Conservation Day 2020 की तारीख 28 जुलाई है, और इस 12 महीनों में, पर्यावरणविदों द्वारा डिजिटल उत्सव को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस 12 महीनों के परिणामस्वरूप, हम दुनिया भर में एक महामारी से जूझ रहे हैं। जिसके नाम से आप सभी भली भाँती वाकिफ हैं। 

सरकार ही नहीं देश के बहुत से लोग हैं जिन्हें इस प्रकृति की फ़िक्र है। ऐसे लोग जो  जल, जंगल और जमीन के संरक्षण के लिए अपना जीवन इसके नाम कर चुके हैं। आशीष शीतल नाम के व्यक्ति पिछले 10 साल से स्वर्ण रेखा नदी को बचाने का काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं उंहोने जंगल के संरक्षण का जिम्मा भी अपने ऊपर उठाया है। 

आशिष, युगांतर भारती नामक एक संस्थान के साथ जुड़े हुए हैं। वो काफी लम्बे समय से झारखंड की प्राकृतिक संपदा, जंगल, खनिज और आदिवासी समाज के  लोगों की लगातार मदद भी कर रहे हैं।

जिन नदियों को पूजते हैं उसी को करते हैं गंदा

aasish  इस बारें में चर्चा करते हुए कहते हैं कि झारखंड एक प्राकृतिक रूप से पूर्ण समर्थ राज्य माना जाता है। यहां के बहुत से लोग आदिवासी हैं और जंगलो में रहते हैं। यहां का समाज आज भी प्रकृति की पूजा करता है और उसके संरक्षण के लिए अपनी पूरी लग्न से काम करता है। लेकिन आज हर जगह शहरीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है और मुनष्य अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगलों पर दबाव बना रहा है। वो उसे लगातार काट रहा है और यही कारन है कि फूड चेन के बहुत से पेड़-पौधे और जीव गायब होते जा रहे है और कुछ पूरी तरह से विलुप्त हो चुके हैं।

एक समय में नदियों को देवी की तरह पूजा जाता था। लेकिन आज देखिए आज नदियों की हालात लोगों ने नाले के सामान कर दी है। ऐसी स्तिथि के लिए कोई आगे आने को तैयार नहीं जो इस समस्या से छुटकारा दिला सके। किसी ऐसे की जरुरत है जो अपनी प्रकृति की रक्षा के लिए आगे आए। युगांतर भारती प्रकृति संरक्षण के लिए काम करती है। इस काम को करने के लिए भी संस्थान को सरकार और कोर्ट की इजाजत लेनी पड़ती है। इसलिए हमने अनेकों बार कोर्ट में पीआइएल डालकर अपने जंगल को संरक्षित किया।

सारंडा जंगल बचाना थी बड़ी चुनौती

सारंडा एक बहुत ही विशालकाय जंगल है जिसमें खनिज संपदा बहुत ही भारी मात्रा में पाई जाती है। एक समय था जब मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने इस जंगल को ओपन माइनिंग के लिए नीलाम कर दिया था। जब जंगल का एक बहुत बड़ा हिस्सा काटा गया तो इको सिस्टम को काफी  नुकसान झेलना पड़ा। जिसके बाद कोर्ट में बहुत सी पीआइएल दायर कर और लंबी कानूनी लड़ाई के बाद इस चल रहे कार्य पर रोक लगी। 

आशीष कहते हैं कि खनन गतिविधियों और औद्योगिक कचरे के कारण नदी, तालाब, कुएं और झरने प्रदूषित हो गए हैं। दामोदर, सुवर्णरेखा, खरकई जैसी नदियाँ बदबूदार सीवर हो गई हैं और अतिक्रमण के कारण नदियाँ संकुचित हो गई थी। गाँवों और बस्तियों से तालाब गायब हो रहे थे। जल स्रोतों को प्रदूषण मुक्त बनाने और उनकी रक्षा करने के उद्देश्य से, युगांतर भारती ने दामोदर बचाओ आन्दोलन चलाया जो वर्ष 2004 में शुरू किया गया।

आदिवासियों को है मदद की जरुरत

आशीष का कहना है कि वन को बचाने के साथ साथ हमें इन जंगलों को सरक्षण प्रदान करने वाले आदिवासी समूह की भी मदद करने की जरुरत है। ये लोग इस प्राकृतिक घर में रहना अधिक पसंद करते हैं लेकिन इन सभी की आर्थिक स्थिति कुछ ज्यादा अच्छी नहीं है। यहां आज भी बहुत से गाँव में रहने वाले लोग अनपढ़ हैं। हम भारत के विकास की बात करते हैं जबकि भारत के अंदर कई गांव में विकास आया तक नहीं है। हमारा Yugantar Bharati Institute लगातार इन आदिवासियों की मदद के लिए आगे आया है और उन्होंने इनके घर में रोजगार देने और इनकी स्थिति में सुधार करने के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम भी चलाया है। 

इसके अलावा Yugantar Bharati Institute ने बहुत सी मुहीम चलाई हैं जिनमें दामोदर बचाओ आंदोलन, स्वर्णरेखा प्रदूषण मुक्ति अभियान, जल जागरूकता अभियान, सोनांचल विकास अभियान, सारंडा बचाओ अभियान, रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण अभियान, जल-वायु-ध्वनि प्रदूषण अनुश्रवण और जल गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशाला शामिल हैं। 

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