लोकसभा चुनाव में किन्नर उम्मीदवारों की भी चुनौती, एक तो पीएम मोदी के खिलाफ मैदान में
Candidates From Third Gender: लोकसभा चुनाव में धनबाद लोकसभा सीट से सुनैना किन्नर चुनाव लड़ रही हैं। साइंस ग्रैजुएट सुनैना कहती हैं कि अब किन्नरों को समाज में बराबरी का दर्जा मिल रहा है। बनारस में हिमांगी सखी पीएम मोदी की हाई प्रोफाइल सीट से उम्मीदवार हैं। अखिल भारत हिंदू महासभा की ओर से उम्मीदवारी दर्ज करा रही हिमांगी का कहना है कि वह पीएम के खिलाफ नहीं हैं, मगर वो कम्युनिटी की बात लोगों तक पहुंचाना चाहती हैं। हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि चुनावी राजनीति में ट्रांसजेंडर समुदाय का न कोई खास दखल है और न ही राजनीतिक दल उन्हें बतौर वोट बैंक गंभीरता से लेते हैं।
चुनावों में गुमशुदा से हैं किन्नर
साल 2014 में चुनाव आयोग की ओर से समुदाय को थर्ड जेंडर का दर्जा मिलने के बावजूद चुनावी लैंडस्केप में ये गुमशुदा से हैं। 2019 के चुनाव में कुल इस कम्युनिटी के महज 6 लोग ही चुनावी मैदान में खड़े थे। उनमें से सिर्फ एक को राजनीतिक दल ने टिकट दिया था। इस चुनाव में 7,322 पुरुष और कुल 726 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव में किस्मत आजमाई थी। इस साल ट्रांसजेंडर वोटरों की तादाद में बढ़ोतरी हुई है। चुनाव आयोग का डेटा बताता है कि 2019 में ये आंकड़ा 39,683 से बढ़कर 48,044 हो गया है। ऐसे में हर चुनाव में समुदाय के लोग चुनाव तो लड़ते हैं, लेकिन ये सांकेतिक ही साबित होता है।
इन किन्नरों ने कमाया नाम
शबनम मौसी को छोड़कर इस समुदाय से अब तक कोई भी चुनाव जीतकर विधानसभा या लोकसभा की दहलीज तक नहीं पहुंच पाई है। 1998 में मध्य प्रदेश के शहडोल सोहागपुर विधानसभा से चुनाव जीतकर वह विधायक बनीं और उनका नाम देश की पहली ट्रांसजेंडर विधायक के तौर पर दर्ज हुआ। देश में 1994 में ट्रांसजेंडर्स को मतदान का अधिकार मिला था। उसके 4 साल बाद शबनम विधानसभा का चुनाव जीती थीं। शबनम की जीत इसलिए अहम है क्योंकि उन्होंने कांग्रेस, बीजेपी और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को धूल चटाई थी।